भारत की पब्लिक हेल्थ पॉलिसी में क्यों खेलों को शामिल करना चाहिए! – why sports should be included in indias public health policy
मैं एक एंटरेप्रेन्योर होने के साथ-साथ एक खिलाड़ी भी हूं, ऐसे में मेरा मानना है कि सप्ताह में कम से कम तीन बार व्यायाम करना बहुत ज़रूरी है। बहुत ज़्यादा व्यस्त दिनों में भी मैं आसान सा व्यायाम ज़रूर करता हूं, व्यायाम का सबसे सरल तरीका है दिन में 10,000 स्टैप्स चलना। यह आदत मुझे न सिर्फ फिज़िकली बल्कि मेंटली भी फिट रखती है। जब मैं रोम में आईटीटीएफ वर्ल्ड मास्टर्स चैम्पियनशिप 2024 की तैयारी कर रहा था, तब यह आदत मेरे बहुत काम आई। मेरे लिए फिटनैस सिर्फ स्पोर्ट्स तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह मेरे लाईफस्टाइल का अभिन्न हिस्सा है, जो काम और जीवन में मेरे परफोर्मेन्स को बेहतर बनाती है।मैं बचपन से ही स्पोर्ट्स खेलता रहा हूं और मेरा मानना है कि भारत के स्पोर्ट्स सिस्टम में बड़े बदलाव आ रहे हैं। एक समय था, जब यह सेक्टर कुछ ही लोगों तक सीमित था, लेकिन आज यह लाईफस्टाइल, फिटनैस और यहां तक कि सामाजिक पहचान से भी जुड़ गया है। वर्तमान में भारत की स्पोर्ट्स इकोनेमी 52 बिलियन डॉलर पर है, और डेलॉयट की रिपोर्ट के अनुसार यह 14 फीसदी की दर से बढ़कर 2030 तक 130 बिलियन डॉलर के आंकड़े पर पहुंच जाएगी।संबंधित खबरेंमनोरंजन के लिए खेले जाने वाले खेलों ने हेल्थ एवं फिटनैस को लेकर भारत का नज़रिया पूरी तरह से बदल डाला है। उदाहरण के लिए पिकलबॉल की बात करें, तो कुछ साल पहले तक इस खेल के बारे में कोई नहीं जानता था, लेकिन तीन साल के भीतर इसने 275 फीसदी की बढ़ोतरी देखी है। 2019 से 2022 के बीच इस खेल के खिलाड़ियों की संख्या 159 फीसदी बढ़ गई है, और एआईपीए के मुताबिक 2028 तक इस खेल के साथ एक मिलियन खिलाड़ी जुड़ चुके होंगे।इस खेल की पहुंच बढ़ने के साथ इसकी लोकप्रियता भी बढ़ी है, आज हर उम्र के लोग इसे खेलना पसंद करते हैं। यह दिल को स्वस्थ बनाने और शरीर का तालमेल बनाने में कारगर है। दिलचस्प बात यह है कि खेलों और व्यायाम के द्वारा भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।खेल हैं सार्वजनिक स्वास्थ्य में निवेशभारत में बीमारियों के इलाज की लागत बढ़ती जा रही है। आजकल ज़्यादातर लोग व्यायाम नहीं करने की वजह से बीमारियों का शिकार हो रहे हैं, जिसके चलते मेडिकल सेवाओं पर बोझ बढ़ रहा है। इसके अलावा डब्ल्यूएचओ के मुताबिक डॉक्टर-मरीज़ अनुपात 1ः1000 होना चाहिए, जो देश में काफी कम है। साथ ही गैर-संचारी रोग जैसे दिल की बीमारियां, कैंसर ,डायबिटीज़, सांस की बीमारियां तेज़ी से बढ़ रहीं हैं। इंडिया जर्नल ऑफ मेडिकल रीसर्च के अनुसार तकरीबन 50 फीसदी मौतें इन्हीं बीमारियों की वजह से होती हैं।डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2022 में भारत के 45.5 फीसदी व्यस्क व्यायाम नहीं करते थे, यह आंकड़ा 2000 की तुलना में दोगुना था। अगर इस पर जल्द से जल्द ध्यान नहीं दिया जाता तो 2030 तक यह संख्या 55 फीसदी के आंकड़े तक पहुंच सकती है। साफ़ है कि हमें इलाज के बजाए प्रीवेन्टिव मॉडल पर ध्यान देना होगा, ताकि लोग व्यायाम को अपनाकर स्वस्थ रहें और बीमारियों के बोझ से बच सकें।स्पोर्ट्स और एक्टिव लाईफस्टाईल (सक्रिय जीवनशैली यानि व्यायाम) को अपनाकर हम बीमारियों से बच सकते हैं। व्यायाम को बढ़ावा देने से भारत में बीमारियों के मामले कम होंगे, जिससे अस्पताल आने वाले मरीज़ों की संख्या कम हो जाएगी, इलाज की लागत कम होगी। लोग शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ेगी।अस्पतालों की तरह कम्युनिटी स्पोर्ट्स सेंटर भी हैं ज़रूरी हालांकि भारत में फिटनैस के बारे में जागरुकता बढ़ रही है, लेकिन फिर भी देश में स्पोर्ट्स सुविधाएं सीमित हैं। ज़्यादा स्पोर्ट्स सुविधाएं बड़े शहरों तक ही सीमित रहती हैं, और ज़्यादातर मामलों में एथलीट्स ही इन सुविधाओं का लाभ उठाते हैं। सार्वजनिक स्थानों पर बने ओपन-एयरजिम और पेडेस्ट्रियन ज़ोन ज़्यादा विकसित नहीं हैं या आम जनता के लिए सुलभ नहीं हैं।सक्रिय जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए हमें स्पोर्ट्स सुविधाओं में निवेश करना चाहिए। सार्वजनिक पार्क, साइक्लिंग लेन, पैदल चलने वालों के लिए सड़कों का सही डिज़ाइन- इन सभी पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है।डेली स्कैंडेनेवियन क अनुसार कोपेनहेगन में हर एक किलोमीटर साइकल चलाने से 1.22 डैनिश क्रोनर का लाभ होता है। क्योंकि साइकल चलाने से जहां एक ओर बीमारियों का खर्च कम हो जाता है, वहीं दूसरी ओर ट्रैफिक की समस्या भी हल होती है। भारत में भी इस तरह के मॉडल को अपनाकर सामाजिक- आर्थिक फायदों को बढ़ावा दिया जा सकता है।खेल से लेकर प्रीवेन्टिव हेल्थकेयर तकः सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अनुकूल स्पोर्ट्स पॉलिसियांभारत का स्पोर्ट्स बजट 2019 में 260 मिलियन डॉलर था जो 2024 में बढ़कर 405 मिलियन डॉलर पर पहुंच गया। खेलो इंडिया, फिट इंडिया एवं नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेन्स बिल 2024 के चलते खेलों में भागीदारी बढ़ी है। लेकिन खेल, सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार ला सकें, इसके लिए ज़रूरी है कि यह सभी प्रयास एथलीट्स और स्कूली प्रोग्रामों के दायरे से बढ़कर हर व्यक्ति तक पहुंचें।जपानमें एक सफल मॉडल अपनाया है। जहां खेलों एवं स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए विशेष पॉलिसियां (MEXT and MHLW) लागू की गई हैं। जिसके चलते आम लोगों की उम्र बढ़कर 83.7 साल तक पहुंच गई है। साथ ही 1992 में 6.6 फीसदी लोग खेलों में सक्रिय थे, जबकि 2010 में यह संख्या बढ़कर 18.4 फीसदी पर पहुंच गई।इसी तरह नीदरलैण्ड्स में स्वास्थ्य, खेल एवं कल्याण मंत्रालय के प्रयासों के चलते फिज़िकल एक्टिविटी की दर 44 फीसदी पर पहुंच गई है। तकरीबन आधी डच आबादी हर सप्ताह खेल खेलती है, ऐसा अनुकूल पॉलिसियों और कम्युनिटी क्लब्स के मजबूत नेटवर्क की वजह से संभव हो पाया है।भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य में बदलाव लाने के लिए स्पोर्ट्स को इन्फ्लुएंसर के रूप में स्थापित करना होगाभारत 2036 ओलम्पिक्स की तैयारियों में जुटा है, इसके लिए हमें स्टेडियमों में नहीं बल्कि स्कूलों से शुरूआत करनी होगी। आज भारत में केवल 20 फीसदी बच्चों को ही हर सप्ताह फिज़िकल एक्टिविटी का मौका मिलता है। डेलॉयट के अनुसार चार में तीन बच्चों के पास उचित एरोबिक क्षमता की कमी है। हमारे देश के नागरिकों को स्वस्थ बनाने के लिए स्कूलों में पढ़ाई के साथ खेलों को शामिल करना ज़रूरी है।ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने साफ कर दिया है कि सही एथलेटिक प्रोग्राम- एकेडमिक शेड्यूल, टॉप कोचिंग एवं सहयोग- के द्वारा खेलों में बच्चों के परफोर्मेन्स को बेहतर बनाया जा सकता है। भारत भी ऐसे ही मॉडल को अपना कर अपने देश में फिटनैस को बढ़ावा दे सकता है।इसके अलावा शहरी योजना और कार्यस्थल भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कॉर्पोरेट जगत को वैलनैस वेबिनार के दायरे से आगे बढ़कर, स्पोर्ट्स ब्रेक, स्पोर्ट्स लीग, फिटनैस और एक्टिव कम्यूटर इन्सेन्टिव जैसे प्रयास शुरू करने चाहिए। अरबन प्लानर्स को शहरों का डिज़ाइन इस तरह से बनाना चाहिए कि सड़कों पर पैदल चलने, साइकल चलाने के लिए लेन हों, साथ ही ऐसे बगीचे हों जहां लोग व्यायाक कर सकें और उनके लिए फिटनैस को अपनाना आसान हो जाए।सार्वजनिक अभियानों के द्वारा लोगों को खेलों के बारे में जागरुक बनाया जा सकता है। स्वच्छ भारत अभियान इसका उदाहरण है, जिसने देश भर के लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने में योगदान दिया। इसी तरह खेलों के बारे में भी लोगों को जागरुक बनाया जा सकता है, ताकि खेल उनके लाईफस्टाइल का अभिन्न हिस्सा बन जाएं।खेल सिर्फ मैडल्स तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अच्छे स्वास्थ्य में निवेश हैं। भारत 2047 तक विकसित देश बनने की दिशा में अग्रसर है, ऐसे में सार्वजनिक स्वास्थ्य के एजेंडा में खेलों को शामिल करना गेम चेंजर साबित हो सकता है। समय आ गया है कि खेलों को लक्ज़री तक सीमित न रखा जाए, इसे दिनचर्या में शामिल किया जाए, ताकि भारत को अधिक स्वस्थ्य, सक्रिय और अधिक उत्पादक देश बनाया जा सके।लेखक एक आंत्रप्रेन्योर, एंजेल इनवेस्टर और एथलीट हैं।