सिर्फ कंपनी का हेल्थ इंश्योरेंस काफी नहीं, जानिए इसमें क्या हो सकती है परेशानी – corporate health insurance vs personal cover pro cons in india
आप जब किसी कॉरपोरेट जॉब में शामिल होते हैं, तो अमूमन कंपनी की ओर से एक बेसिक हेल्थ इंश्योरेंस प्लान मिलता है। यह प्लान एक शुरुआती सुरक्षा कवच जरूर देता है, लेकिन क्या यह आपकी और आपके परिवार की पूरी सेहत और वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है? ज्यादातर मामलों में इसका जवाब है, नहीं।भारत जैसे देश में जहां हेल्थ इंश्योरेंस की पहुंच अभी भी सीमित है, वहां सिर्फ कॉरपोरेट इंश्योरेंस पर निर्भर रहना काफी जोखिम भरा फैसला हो सकता है। आइए विस्तार से समझते हैं कि क्यों।बढ़ते मेडिकल खर्चों के मुकाबले कवरेज नाकाफीसंबंधित खबरेंकंपनी से मिला इंश्योरेंस अक्सर एक सीमित रकम तक कवर करता है। मिसाल के लिए, ₹2 लाख से ₹5 लाख तक की पॉलिसी आम बात है। लेकिन आज के समय में एक बड़ी सर्जरी या गंभीर बीमारी के इलाज में इससे कहीं ज्यादा खर्च आ सकता है।महंगाई और मेडिकल टेक्नोलॉजी की लागत बढ़ने से आज ICU, कैंसर ट्रीटमेंट, ऑर्गन ट्रांसप्लांट जैसी सेवाओं पर लाखों रुपये खर्च हो सकते हैं। ऐसे में सिर्फ कॉरपोरेट प्लान पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है।नौकरी के साथ प्लान का अंतकंपनी का इंश्योरेंस तब तक ही चलता है जब तक आप उस नौकरी में हैं। जैसे ही आप नौकरी छोड़ते हैं, नौकरी बदलते हैं या कंपनी छंटनी कर देती है, तो आपका हेल्थ इंश्योरेंस खत्म हो जाता है।अब सोचिए, अगर ऐसे समय में कोई मेडिकल इमरजेंसी आ जाए तो आप बिना किसी कवरेज के कैसे निपटेंगे? यहीं पर व्यक्तिगत हेल्थ इंश्योरेंस काम आता है, जिसका आपकी नौकरी से कोई सरोकार नहीं होता।फैमिली कवरेज की कमीअक्सर कॉरपोरेट हेल्थ प्लान्स में सिर्फ कर्मचारी या सीमित फैमिली मेंबर्स (जैसे पत्नी और 2 बच्चे) को ही कवर किया जाता है। लेकिन अगर आपके साथ माता-पिता रहते हैं, या आप ज्यादा फैमिली कवरेज चाहते हैं, तो आपको निराशा हो सकती है।वहीं, पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस में आप अपने हिसाब से पूरा फैमिली कवरेज चुन सकते हैं, जिसमें सास-ससुर या सिंगल पैरेंट्स को भी शामिल किया जा सकता है।भारत में हेल्थ इंश्योरेंस की चुनौतियांभारत में हेल्थ इंश्योरेंस अभी भी जागरूकता का मसला है। कम पहुंच, ज्यादा प्रीमियम, छिपे हुए चार्जेस और जीएसटी जैसी वजहों से लोग इससे दूर रहते हैं। यहां तक कि आयुष्मान भारत जैसी सरकारी स्कीमें भी ओपीडी (Outpatient) खर्च को कवर नहीं करतीं, जबकि भारत में हेल्थ खर्च का बड़ा हिस्सा यहीं होता है।पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस के फायदे व्यापक कवरेज: आपका निजी हेल्थ इंश्योरेंस केवल हॉस्पिटल में भर्ती होने तक सीमित नहीं होता। यह ओपीडी, महंगे टेस्ट, पुरानी बीमारियों और क्रिटिकल इलनेस को भी कवर कर सकता है। नौकरी बदलने का असर नहीं: पर्सनल पॉलिसी आपके करियर मूवमेंट से प्रभावित नहीं होती। आप चाहे जॉब बदलें, फ्रीलांसर बनें या रिटायर हो जाएं, यह कवरेज जारी रहता है। टैक्स लाभ: सेक्शन 80D के तहत आप ₹25,000 (वरिष्ठ नागरिकों के लिए ₹50,000) तक की टैक्स छूट भी ले सकते हैं। राइडर्स और कस्टमाइजेशन: आप अपनी जरूरतों के मुताबिक मेटरनिटी, क्रिटिकल इलनेस, डेली हॉस्पिटल कैश आदि जैसे राइडर्स जोड़ सकते हैं। यह भी पढ़ें : Health Insurance: बुजुर्गों को भी मिल सकता है सस्ता हेल्थ इंश्योरेंस, ये हैं 5 आसान तरीके