GST रजिस्टर्ड बिजनेसेज को 1 अप्रैल से पहले सभी ई-इनवॉयसेज अपलोड करना होगा – gst registered businesses will have to upload their all e invoices from 1st of april
ई-इनवॉयसिंग या इलेक्ट्रॉनिक इनवॉयसिंग जीएसटी के तहत एक सिस्टम है। इसके तहत सभी बिजनेसेज-टू-बिजनेसेज (बी2बी) इनवॉयसेज को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से अपलोड किया जाता है और इनवॉयस रजिस्ट्रेशन पोर्टल (आईआरपी) के जरिए ऑथेंटिकेट किया जाता है। आईआरपी हर इनवॉयस को एक यूनिक इनवॉयस रजिस्ट्रेशन नंबर (आईआरएन) देता है, जिससे फ्रॉड का रिस्क कम हो जाता है। इस सिस्टम को टैक्स कंप्लायंस व्यस्थित बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने और टैक्स चोरी रोकने के लिए शुरू किया गया था। इसमें इनवॉयसेज की रियल-टाइम रिपोर्टिंग होती है।अभी ऐसे बिजनेसेज जिनका सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपये से ज्यादा है, उन्हें B2B ट्रांजेक्शन के लिए ई-इनवॉयसिंग का इस्तेमाल करना जरूरी है। हालांकि, 1 अप्रैल, 2025 से जीएसटी रजिस्टर्ड (GST Registered) ऐसे बिजनेसेज जिनका सालाना टर्नओवर 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है उन्हें नए नियम का पालन करना होगा। उन्हें जारी होने के 30 दिन के अंदर IRP पर अपने ई-इनवॉयसेज अपलोड करने होंगे। यह कदम सरकार की उस कोशिश का हिस्सा है जिसके तहत वह समय पर रिपोर्टिंग, गड़बड़ियों में कमी और बगैर किसी दिक्कत इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम सुनिश्चित करना चाहती है।किस पर पड़ेगा असर?पहले यह नियम सिर्फ ऐसे बिजनेसेज पर अप्लाई होता था, जिनका सालाना टर्नओवर 100 करोड़ रुपये से ज्यादा है। इस लिमिट में बदलाव होने से कई बिजनेसेज इस नियम के दायरे में आ गए हैं। अब उन्हें स्ट्रक्चर्ड और समय पर इनवॉयसिंग प्रोसेस पूरा करना होगा। इस नियम के तहत सभी इनवॉयसेज, क्रेडिट नोट्स और डेबिट नोट्स निर्धारित 30 दिन के पीरियड में जरूर अपलोड हो जाने चाहिए।संबंधित खबरेंबिजनेसेज पर क्या पड़ेगा असरइस अपडेट के साथ जो बिजनेसेज ई-इनवॉयसेज जेनरेट करते हैं उन्हें डेडलाइन का पालन सख्ती से करना होगा। समय पर नियम का पालन नहीं करने जैसे इनवॉयस सबमिशन में देर होने से कई तरह के फाइनेंशियल और ऑपरेशनल चैलेंजेज हो सकते हैं:1. परचेजर्स के लिए वर्किंग कैपिटल प्रॉब्लम्स: परचेजर्स अपने इनपुट टैक्स क्रेडिट को क्लेम करने के लिए अपलोडेड इनवॉयसेज पर निर्भर करते हैं। अगर कोई सप्लायर समय पर इनवॉयसेज अपलोड नहीं कर पाता है तो उसके कस्टमर्स आईटीसी क्लेम नहीं कर पाएंगे। इससे कैश फ्लो में दिक्कत आएगी। इसका असर बिजनेसेज खासकर हाई वैल्यू के ट्रांजेक्शंस वाले बिजनेसेज की वर्किंग कैपिटल साइकिल पर पड़ सकता है।2. लेट इनवॉयसेज का रिजेक्शन: अगर कोई इनवॉयस 30 दिन के अंदर अपलोड नहीं होता है तो आईआरपी अपने आप इसे रिजेक्ट कर देगा, जिससे इस पर टैक्स क्रेडिट क्लेम नहीं किया जा सकेगा।3. बढ़ा हुआ कंप्लायंस: बिजनेसेज को अपने इनवॉयसिंग सिस्टम को अपडेट करना होगा और अपनी टीम को इस बात की ट्रेनिंग देनी होगी कि सभी इनवॉयसेज तय समय में अपलोड कर दिए जाए।नियमों का पालन नहीं करने पर पेनाल्टी चुकानी पड़ सकती है और टैक्स फाइलिंग में दिक्कत आ सकती है।बिजनेसेज को ये कदम उठाने होंगेइस नियम के व्यवस्थित तरीके से क्रियान्वयन के लिए बिजनेसेज को निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:-बिलिंग सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करना होगा: अपडेटेड सॉल्यूशन उपलब्ध होने चाहिए ताकि इनवॉयसेज को रियल टाइम में जेनरेट और अपलोड किया जा सके।-इनटर्नल कंप्लायंस चेक की स्थापना: डेडिकेटेड टीम को इनवॉयस की अपलोडिंग पर नजर रखी होगी ताकि डेडलाइन मिस न हो जाए।-सप्लायर्स और कस्टमर्स को एजुकेट करना: चूंकि देर से अपलोड करने का असर पूरी सप्लाई चेन पर पड़ता है, जिससे बिजनेसेज को अपने स्टेकहोल्डर्स को समय ई-इनवॉयसिंग की अपलोडिंग और डेबिट और क्रेडिट नोट्स के बारे में सूचित करना होगा।-एरर-फ्री अपलोड्स: ऐसे इनवायस जिसमें गलत जानकारी होगी, वे खारिज हो सकते हैं। इससे टैक्स फाइलिंग और देर और दूसरी दिक्कतें आ सकती हैं।यह भी पढ़ें: Income Tax new rules: 1 अप्रैल से लागू होने जा रहे हैं इनकम टैक्स के नए नियम, इन्हें समझ लेंगे तो आगे दिक्कत नहीं होगीई-इनवॉयसिंग नियमों का विस्तार जीएसटी कंप्लायंस बढ़ाने और टैक्स ट्रांसपेरेंसी की दिशा में बड़ा कदम है। बिजनेसेज को शुरुआत में नए नियमों के पालन में दिक्कत आ सकती है। लेकिन समय पर कंप्लायंस से उन्हें आईटीसी क्लेम करने और बेहतर फाइनेंशियल प्लानिंग में आसानी होगी। बिजनेसेज को इन कंप्लायंस का जरूर ध्यान रखना चाहिए। उन्हें अपने सिस्टम को अपडेट करना चाहिए और अपनी टीम को ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि नियमों में इस बदलाव का ठीक तरह से पालन किया जा सके।(लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। वह पर्सनल फाइनेंस खासकर इनकम टैक्स से जुड़े मामलों के एक्सपर्ट हैं)