SEBI ने चपरासी को 37 लाख चुकाने का दिया आदेश, सच्चाई जानने के बाद देनदारी से फ्री किया – sebi demands rupees 37 lakhs from a peon but free him after knowing the truth
सेबी ने एक चपरासी सहित कंपनी के डायरेक्टर्स और प्रमोटर्स को निवेशकों को 36.97 लाख रुपये लौटाने का आदेश दिया। यह मामला 2018 का है। इस कंपनी का नाम ग्रीनबैंड एग्रो है। इस कंपनी ने वित्त वर्ष 2012 और वित्त वर्ष 2014 के बीच निवेशकों को एनसीडी के जरिए यह पैसा जुटाया था। सेबी ने जांच में पाया कि कंपनी ने एनसीडी इश्यू से जुड़े कई नियमों का उल्लंघन किया था। चूंकि, यह एनसीडी 200 से ज्यादा लोगों को इश्यू किया गया था, जिससे यह पब्लिक ऑफर के तहत आता था। इसलिए कंपनी को इश्यू से जुड़े नियमों का पालन करना जरूरी था।खान सहित 13 लोगों पैसे लौटाने को कहा गया थातसलीम आरिफ खान उन 13 लोगों में शामिल थे, जिन्हें निवेशकों को पैसा लौटाने को कहा गया था। सेबी ने इस बारे में जून 2018 में आदेश पारित किया था। दरअसल खान इस कंपनी में चपरासी थे। उन्होंने एक साल तक पश्चिम बंगाल की इस कंपनी में काम किया था। उनका काम कंपनी के ऑफिस में आने वाले लोगों को पानी पिलाना था। उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि कंपनी ने उन्हें नॉन-एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर बनाया था।संबंधित खबरेंकंपनियों के प्रमोटर्स ऐसे फर्जीवाड़ा करते रहते हैंमनीकंट्रोल ने इस बारे में कई एक्सपर्ट्स से बातचीत की। एक एक्सपर्ट ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि कंपनियों के प्रमोटर्स ऐसा करते हैं। वह चपरासी जैसे एंप्लॉयीज के डिजिटल सिग्नेचर बनवाते हैं। इस बात की कोई जानकारी ऐसे एंप्लॉयीज को नहीं होती है। उन्हें यह बताया जाता है कि उनका डिजिटल सिग्नेचर इसलिए बनवाया जा रहा है क्योंकि यह कंपनी के रिक्रूटमेंट प्रोसेस का हिस्सा है। एंप्लॉयीज के सिग्नेचर का इस्तेमाल कंपनी को डायरेक्टर बनाने के लिए किया जाता है। उसके बाद उसके सिग्नेचर का हर उस जगह इस्तेमाल होता है, जहां डायरेक्टर के सिग्नेचर की जरूरत पड़ती है।ऐसे होता है पूरा फर्जीवाड़ाकंपनी लोन या कर्ज जुटाने तक के लिए एंप्लॉयी के डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल करती है। इस मामले में खान ने अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि उन्होंने कंपनी में एक साल काम किया था। वह दिहाड़ी पर कंपनी में काम करते थे। इसका मतलब यह है कि वह जिस दिन काम पर आते थे, उस दिन का पैसा कंपनी उन्हें देती थी। जिस दिन नहीं आते थे उसका पैसा कंपनी काट लेती थी। उनकी कंपनी में स्थायी नौकरी नहीं थी। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने कभी इस कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर को नहीं देखा था।खान से सच्चाई जानने के बाद सेबी ने उन्हें फ्री कर दियाखान ने यह भी बताया कि कंपनी के फंड जुटाने की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने सेबी से पैसे चुकाने का आदेश मिलने के बाद SAT में अपील की। सैट ने सेबी को मामले की जांच करने को कहा। फिर सच्चाई सामने आई। उन्हें फर्जी तरीके से कंपनी का नॉन-एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर बना दिया गया था। सेबी ने सच्चाई बताने और उसकी जांच करने के बाद खान को फ्री कर दिया। उनके ऊपर लाखों रुपये चुकाने की लायबिलिटी भी वापस ले ली।