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Waqf Act 2025: ‘क्या मुस्लिम भी हिंदू ट्रस्ट का हिस्सा होंगे’: वक्फ कानून पर कल फिर होगी सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा पर जताई चिंता – waqf amendment act hearing supreme court asks centre will you allow muslims to be part of hindu religious trusts

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Waqf Amendment Act 2025: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (16 अप्रैल) को वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र से पूछा कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह भी कहा कि ‘वक्फ बाय यूजर’ को खत्म करने से समस्या पैदा होगी, इसका कुछ दुरुपयोग हुआ है। शीर्ष अदालत गुरुवार (17 अप्रैल) को दोपहर दो बजे फिर से वक्फ कानून 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा।’वक्फ बाय यूजर’ के प्रावधान को हटाने पर सवाल उठाते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि अंग्रेजी शासन काल से पहले वक्फ रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि बहुत सारी मस्जिदें 13वीं, 14वीं और 15वीं शताब्दी की बनी हैं। आप चाहते हैं कि वो आपको सेल डीड दिखाएं, लेकिन वे कहां से दिखाएंगे।पीठ ने कहा, “आप उपयोगकर्ता द्वारा ऐसे वक्फ को कैसे रजिस्टर करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? इससे कुछ पूर्ववत हो जाएगा। हां, कुछ दुरुपयोग है। लेकिन वास्तविक भी हैं। मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी पढ़ा है। उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को मान्यता दी गई है। यदि आप इसे पूर्ववत करते हैं तो यह एक समस्या होगी। विधायिका किसी निर्णय, आदेश या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकती। आप केवल आधार ले सकते हैं।”संबंधित खबरेंसरकार का तर्कमेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम के तहत शासित नहीं होना चाहता। पीठ ने इसके बाद मेहता से पूछा, “क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे। इसे खुलकर कहें।” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता था, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन नहीं लिया जा सकता था। अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता था।पीठ ने कहा, “आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते।” अदालत ने एक आदेश पारित करने का प्रस्ताव रखा है जिसके तहत वक्फ बाय यूजर सहित घोषित वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा। लेकिन केंद्र ने इसका विरोध किया, सुनवाई की मांग की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह गुरुवार दोपहर दो बजे भी वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा।हिंसा पर जताई चिंताशीर्ष अदालत ने वक्फ कानून पर सुनवाई के दौरान हिंसा पर चिंता जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह परेशान करने वाली बात है, क्योंकि अदालत वक्फ अधिनियम के मामले पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आस्था की परवाह किए बिना, पदेन सदस्यों के तौर पर लोगों को नियुक्त किया जा सकता है। लेकिन अन्य सदस्यों का मुस्लिम होना जरूरी है।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या वह मुसलमानों को हिंदू धार्मिक न्यासों का हिस्सा बनने की अनुमति देने को तैयार है? वक्फ मामले में सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कि इस पर संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया और विस्तृत कवायद की गई।उन्होंने कि JPC ने 38 बैठकें कीं और 98.2 लाख ज्ञापनों की जांच की। फिर संसद के दोनों सदनों ने इस कानून को पारित किया। एक वादी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने कहा कि वक्फ बाय यूजर इस्लाम की स्थापित प्रथा है, इसे छीना नहीं जा सकता।याचिकाकर्ताओं का तर्कयाचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ कर सकते हैं। सिब्बल ने पूछा, “सरकार कैसे तय कर सकती है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ करने का पात्र हूं या नहीं?”ये भी पढ़ें- BR Gavai: जस्टिस बीआर गवई होंगे भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश, 14 मई को CJI के रूप में लेंगे शपथउन्होंने कहा, “सरकार यह कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ कर सकते हैं जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?” कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम का प्रभाव पूरे भारत में होगा। याचिकाओं को हाई कोर्ट को नहीं भेजा जाना चाहिए।वक्फ बन चुका है कानूनकेंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया, जिसे दोनों सदनों में तीखी बहस के बाद संसद से पारित होने के बाद पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई। राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 128 और विरोध में 95 सदस्यों ने मत दिया। वहीं, लोकसभा में इसके पक्ष में 288 तथा विरोध में 232 वोट पड़े। इस तरह यह दोनों सदनों से पारित हो गया था। केंद्र ने आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर कर मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की अपील की थी।

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