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Nepal Politics: नेपाल की जनता क्यों चाहती है फिर से राजशाही, क्या पूर्व राजा ज्ञानेंद्र फिर गद्दी पर बैठेंगे? – why do the people of nepal want monarchy again will former king gyanendra sit on throne again

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नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का रविवार को राजधानी काठमांडू में हजारों समर्थकों ने स्वागत किया। इस दौरान राजशाही और हिंदू धर्म को राज्य धर्म के रूप में बहाल करने की मांग की गई। ऐसा अनुमान है कि ज्ञानेंद्र के लगभग 10,000 समर्थकों ने पश्चिमी नेपाल के दौरे से लौटते समय काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयर पोर्ट के मेन एंट्री गेट को ब्लॉक कर दिया। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस भीड़ में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) के सदस्य और कार्यकर्ता शामिल थे। 1990 के दशक में बनी RPP अब राजशाही को बहाल करने की मांग कर रही है।RPP को राजशाही में पुराने सहयोगियों का समर्थन हासिल है। पार्टी के पास नेपाल की संसद में 275 में से 14 सीटें हैं, जबकि पिछले चुनाव में उसे केवल एक सीट मिली थी। नेपाल में अगला चुनाव 2027 में होगा। आइये नेपाल की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को समझते हैं और जानते हैं कैसे ज्ञानेंद्र शाह को सत्ता से हटाया गया और क्यों देश में हिंदू राजतंत्र की मांग उठ रही है।जब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को पद से हटाया गयासंबंधित खबरें77 साल के ज्ञानेंद्र 2002 में राजा बने थे, जब उनके बड़े भाई बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह और उनके परिवार की महल में हत्या कर दी गई थी। उन्होंने 2005 तक बिना किसी कार्यकारी या राजनीतिक शक्तियों के संवैधानिक राज्य प्रमुख के रूप में शासन किया। इसके बाद उन्होंने यह कहते हुए पूर्ण सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया कि वे राजशाही-विरोधी माओवादी विद्रोहियों को हराने के लिए काम कर रहे थे।राजा ने सरकार और संसद को भंग कर दिया, राजनेताओं और पत्रकारों को जेल में डाल दिया, कम्युनिकेशन व्यवस्था काट दी, इमरजेंसी की घोषणा कर दी और देश पर शासन करने के लिए सेना का इस्तेमाल किया।इस सब के कारण सड़कों पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके कारण 2006 में ज्ञानेंद्र को बहुदलीय सरकार को सत्ता सौंपनी पड़ी। सरकार ने माओवादियों के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे एक दशक से चल रहा गृह युद्ध खत्म हो गया, जिसके कारण हजारों लोगों की मौत हुई थी।2008 में, नेपाल की 240 साल पुरानी हिंदू राजशाही को खत्म करने और देश को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में बदलने के लिए संसद की ओर से मतदान किए जाने के बाद ज्ञानेंद्र ने सिंहासन से इस्तीफा दे दिया।तब से नेपाल में 13 सरकारें आ चुकी हैं और देश के कई लोग इस गणतंत्र से निराश हो चुके हैं। उनका कहना है कि यह राजनीतिक स्थिरता लाने में विफल रही है और नेपाल की गिरती अर्थव्यवस्था और व्यापक भ्रष्टाचार के लिए सरकारों को दोषी ठहराते हैं।नेपाल के लोग राजशाही की वापसी क्यों चाहते हैं?ज्ञानेंद्र के स्वागत में आयोजित रैली में शामिल लोगों ने कहा कि वे देश को और ज्यादा बिगड़ने से रोकने के लिए राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं।72 साल के थिर बहादुर भंडारी ने न्यूज एजेंसी AP को बताया, “हम राजा को अपना पूर्ण समर्थन देने और उन्हें फिर से राजसिंहासन पर बिठाने के लिए उनके पीछे खड़े होने के लिए यहां आए हैं।”विश्लेषकों का कहना है कि नेपाल की राजनीति में “राजशाही की ओर यह झुकाव” भ्रष्ट सरकारों के खिलाफ गहरे असंतोष को दर्शाता है। साथ ही इससे पता चलता है कि जनता की 2008 में जनांदोलन के बाद औपचारिक रूप से खत्म हुई राजशाही की ओर जाने की लालासा है।क्या ज्ञानेंद्र शाह वापसी करेंगे?गद्दी से उतारे जाने के बावजूद ज्ञानेंद्र ने देश नहीं छोड़ा। 18 फरवरी को नेपाल के राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उन्होंने भाषण देते हुए नेपालियों से “देश की रक्षा, प्रगति और समृद्धि” के लिए एकजुट होने का आग्रह किया और देश से “प्रगति के पथ” पर आगे बढ़ने की अपील की।दिप्रिंट के अनुसार, उन्होंने कहा, “निषेधात्मक दृष्टिकोण अपनाने वाली राजनीति लोकतंत्र को मजबूत नहीं करती है। पक्ष और विपक्ष का अहंकार, व्यक्तिगत हित और हठधर्मिता लोकतंत्र को गतिशील नहीं बना सकती।”काठमांडू पोस्ट के संपादकीय में राजशाही की प्रशंसा करने के खिलाफ चेतावनी दी गई थी। कई लोगों का मानना ​​है कि यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि ज्यादातर नेपाली राजशाही के दावे के अनुसार, संस्था को बहाल करना चाहते हैं।संपादकीय में कहा गया है, “लोकतंत्र में किसी राजनीतिक दल या राजनीतिक विचारधारा की लोकप्रियता का सबसे अच्छा मापदंड उसे मतपेटी में मिलने वाला समर्थन है।” संपादकीय में कहा गया है कि आरपीपी अभी तक किसी भी तरह से राजनीतिक रूप से मजबूत पार्टी नहीं है।नेपाल में उठी फिर से राजशाही लाने की मांग! पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में एयरपोर्ट पर उतरे हजारों समर्थक

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